हेलो दोस्तों क्या आप शिक्षा के निजीकरण के विषय में जानकारी ढूंढ रहे हैं जैसे कि शिक्षा के निजीकरण के नुकसान, फायदे, अर्थ, सुझाव, उत्पन्न समस्याएं, समाधान या निजीकरण का शिक्षा पर प्रभाव या फिरशिक्षा के निजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका, तो आप बिल्कुल सही ब्लॉग पोस्ट पढ़ रहे हैं।
इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें इसमें आपके शिक्षा का निजीकरण से संबंधित सभी समस्याएं हल हो जाएंगी।
Note- शिक्षा के निजीकरण पर हम विस्तृत रूप में पहले भी चर्चा कर चुके हैं।
जरूर पढ़े- शिक्षा के निजीकरण पर पूरी जानकारी।
शिक्षा के निजीकरण के नुकसान, फायदे, अर्थ एवं सुझाव
निजीकरण का इतिहास
निजीकरण का इतिहास वैसे तो बहुत पुराना नहीं है क्योंकि सन 1960 में एक पुस्तक ‘The Age of Documentry’ मे निजीकरण शब्द का प्रयोग पहली बार किया गया था। यह पुस्तक पीटर एफ ड्रकर द्वारा लिखी गई थी। इसके बाद से कई वर्षों में निजीकरण का उदाहरण देखने को मिला। 1979 में ग्रेट ब्रिटेन में सरकारी उपक्रमों का निजीकरण किया गया। कुछ वर्षों बाद 1991 में भारत में निजीकरण को अपनाया गया।
भारत के बाद कई अन्य देशों में भी इसे स्वीकारा गया। इन देशों में सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, फ्रांस मुख्य है। बाद में निजीकरण व्यापार, उद्योग एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी अपने पांव पसारने लगा।
जरूर पढ़ें- निजीकरण पर निबंध।
निजीकरण का अर्थ
निजीकरण का अर्थ यह है कि ऐसे कोई प्रक्रिया जिसमें पहले तो कोई संस्था सरकार द्वारा संचालित होती हो परंतु बाद में वह संस्था का संचालन किसी निजी उद्यमी के द्वारा किया जाने लगे। निजीकरण का अर्थ आप यह भी लगा सकते हैं कि देश के कुछ ऐसी आर्थिक गतिविधि जिसमें राज्य या सार्वजनिक क्षेत्र का निवेशकम हो जाए और निजी कंपनियों का योगदान बढ़ जाए।
शिक्षा के निजीकरण के फायदे (लाभ)
शिक्षा में निजीकरण के लाभ निम्नलिखित है-
- शिक्षा के स्तर में सुधार।
- लापरवाही का अतिक्रमण।
- वित्तीय मुश्किलों का समाधान।
- शिक्षकों की सही उपयोगिता का सही तरीके से उपयोग।
- प्रशासन की समस्याओं का समाधान।
- सही तरीके से नियंत्रण।
- भ्रष्टाचार पूर्ण रूप से समाप्त करना।
- संस्कृति का बहुमूल्य विकास।
- विकसित देशों की पद्धति अपनाना।
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शिक्षा के निजीकरण के नुकसान ( हानि)
शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण करने से निम्नलिखित हानियां होंगी-
- महंगाई में बढ़ोतरी।
- शिक्षकों के अंधाधुध शोषण की संभावना।
- विकास की होड़ में शिक्षा का अभाव।
- निजी कंपनियों के फायदे के लिए शिक्षकों की इच्छाओं का अतिक्रमण।
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शिक्षा के निजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका
शिक्षा के निजीकरण की प्रक्रिया में एक शिक्षक की भूमिका बहुत ही कम होने वाली है। वैसे तो शिक्षक को ढेर सारे नए अवसर मिलेंगे अपने पद की उन्नति के लिए और बच्चों के रोशन भविष्य के लिए। परंतु इसका एक दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि एक निजी कंपनी के अंदर काम करने पर उनका शोषण की भी अत्यधिक संभावना है।
जैसा कि इस बात से हम सब भलीभांति वाकिफ है कि निजी कंपनी का स्वार्थी उसके लिए सबसे अहम होता है और वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही अपने सभी कार्य करता है तो ऐसे में एक शिक्षक के सम्मान का अतिक्रमण होना बहुत ही सामान्य बात हो जाती है।
निजीकरण का शिक्षा पर प्रभाव
निजीकरण का शिक्षा पर प्रभाव सकारात्मक व नकारात्मक दोनों तरीके से देखा जा सकता है। यदि एक सकारात्मक ढंग से देखा जाए तो शिक्षा का अपार विकास निजीकरण के माध्यम से हो सकता है। वहीं दूसरी ओर यदि नकारात्मक ढंग से देखा जाए तो इसमें लगने वाली फीस व व्यय हद से अधिक होने की संभावना भी दिख रही है। यदि ऐसा हुआ तो गरीब व्यक्ति के लिए शिक्षा प्राप्त कर पाना बहुत ही मुश्किल हो सकता है।
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शिक्षा के निजीकरण पर हमारे स्वयं के सुझाव (विचार)
किसी भी चीज का किसी भी चीज पर प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीके से प्रभाव होता है, तो ऐसे में निजीकरण को केवल नकारात्मक तौर पर ही लेना सही नहीं होगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की निजीकरण के फायदे अपार है, तो ऐसे में इसे लेकर अत्यधिक चिंता करना ठीक बात नहीं है- जो होगा अच्छा ही होगा। आप स्वस्थ रहिए और मस्त रहिए।
तो दोस्तों आज हमने शिक्षा के निजीकरण के नुकसान, फायदे, अर्थ, सुझाव, उत्पन्न समस्याएं, समाधान, निजीकरण का शिक्षा पर प्रभावव शिक्षा के निजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका पढ़ी। हम आशा करते हैं कि इस लेख से आपको कुछ जानने को मिला होगा। यदि लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों व सगे संबंधियों में भी अवश्य शेयर करें। धन्यवाद।